CLASS 10TH MADHYAMIK WEST BENGAL BOARD GEOGRAPHY CHAPTER - 2 वायुमंडल important questions
VTC MADHYAMIK CLASSES
ASANSOL
WEST BENGAL BOARD
CLASS 10TH
GEOGRAPH
CHAPTER 2
वायुमंडल
Q. 1. वायुमंडल किसे कहते हैं ? वायुमंडल की संरचना का वर्णन करें।उत्तर - मूल रूप से वायुमंडल विभिन्न गैसों का मिश्रण है जो पृथ्वी के चारों ओर काफी ऊंचाई तक एक आवरण की तरह फैला है तथा गुरुत्वाकर्षण के साथ या पृथ्वी पर टिका हुआ है।
वायुमण्डल Atmosphere शब्द का हिन्दी स्थान्तरण है जो दो ग्रीक शब्दों Atoms और Spharia से बना है। Atoms का अर्थ गैस (Vapour) है और Spharia का अर्थ गोलक या घेरा है, अत: वायुमण्डल पृथ्वी के चारों ओर फैला हुआ गैसीय घेरा है।
पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के कारण यह वायुमण्डल सदा घरातल से सटा रहता है और कभी भी उससे अलग नहीं होता है। पृथ्वी के परिभ्रमण के साथ-साथ यह वायुमण्डल भी घूमा करता है।
पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न प्रकार के जीवों का अस्तित्व इसी वायुमण्डल के कारण सम्भव हो सका है क्योंकि इसमें मानव प्राणी व जन्तु जगत के श्वसन के लिए आक्सीजन और पादप-जगत (Plant Kingdom) के लिए कार्बन-डाई- आक्साइड जैसी जीवनदायिनी गैसें विद्यमान है। वायुमण्डल में उपस्थित कार्बन डाई आक्साइड गैस सौर विकिरण को रोक कर पृथ्वी का औसत ताप 35°C बनाये रखती है।
वायुमंडल का संघटन -
वायुमण्डल कई गैसों का मिश्रण है। गैसों के अतिरिक्त वायुमंडल में जलवाष्प तथा धूलकण भी उपस्थित रहते हैं। अधिक मात्रा में उपस्थित ठोस एवं द्रवकणों को सामूहिक रूप से वायु- विलय अथवा एरोसोल (aerosols) कहते है। वायु के मुख्य अवयव निम्नलिखित हैं-
i). गैसे - वायुमण्डल की निचली तहों में भारी गैसे (heavy gases) तथा ऊपरी तहों में हल्की गैसें (light) gasses) पाई जाती हैं। नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन-डाइ-ऑक्साइड, ऑर्गन तथा हाइड्रोजन प्रमुख भारी गैसें हैं । हल्की गैसों में हीलियम, हाइड्रोजन, नीयोन, क्रिप्टोन, जेनोन, ओजोन इत्यादि हैं। कुछ महत्वपूर्ण गैसों का विवरण निम्नलिखित है -
(a) नाइट्रोजन (N): वायु में इस गैस की प्रतिशत मात्रा सभी गैसों से अधिक 78.08% है। नाइट्रोजन सरलता से अन्य पदार्थों के साथ रासायनिक संयोग नहीं करता परन्तु मृदा में स्थिर हो जाता है। यह पौधों एवम जीवों की वृद्धि के लिए आवश्यक है।
ii.ऑक्सीजन (O2) :-
ऑक्सीजन गैस जीवनदायिनी मानी जाती है क्योंकि इसके बिना हम साँस नहीं ले सकते । वायुमण्डल में आयतन के अनुसार नाइट्रोजन के बाद ऑक्सीजन की मात्रा सबसे अधिक 20.94% है। इस प्राण वायु भी कहा जाता है।
(c) कार्बन-डाइऑक्साइड (CO): यद्यपि वायुमण्डल में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड बहुत थोड़ी मात्रा में 0.03% में उपस्थित है तथापि यह उसका महत्वपूर्ण अवयव है । CO, के प्रमुख उपभोक्ता हरे पौधे और महासागर हैं। हरे पौधे कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का उपयोग अपने भोजन निर्माण हेत करते हैं, तथा महासागर CO को कार्बोनेट के रूप में घोलते हैं। इस प्रकार वायुमंडल में CO, का संतुलन बना रहता है।
(d) हाइड्रोजन (H) :- यह सबसे हल्की गैस है जो सभी गैसों के ऊपर लगभग 1100 कि.मी. की ऊँचाई तक पायी जाती है।
(e) ओजोन (O): यह गैस ऑक्सीजन का ही एक विशेष रूप है। यह ऑक्सीजन के तीन अणुवो से मिलकर बनता है। यह वायुमण्डल में अधिक ऊँचाइयों पर अति न्यून मात्रा (0.00006%) में मिलती है । यह सूर्य से आनेवाली पराबैंगनी विकिरण (Ultraviolet Radiations) के कुछ अंश को अवशोषित कर लेती है। यह 10 से 50 कि.मी. की ऊंचाई तक केन्द्रित है।
(B) जलवाष्प (Water Vapour) :- वायुमण्डल में जलवाष्प की उपस्थिति जलवायु को सबसे अधिक प्रभावित करती हैं। धरातल पर जलभागों, मिट्टियों तथा वनस्पतियों के वाष्पीकरण द्वारा वायुमण्डल में जलवाष्प पहुँचती रहती है। वायु में अधिकतम जलवाष्प की मात्रा 5% रहती है। वाष्प की यह मात्रा तापमान पर निर्भर करती है। पृथ्वी के धरातल से 5 किमी. की ऊँचाई तक वायुमण्डलीय भाग में समस्त वाष्प का 90% भाग विद्यमान रहता है। क्रमशः ऊपर जाने पर वाष्प की मात्रा कम होती जाती है। वायुमण्डल में विद्यमान न्यून वाष्प की मात्रा बहुत महत्व की है क्योंकि वाष्प के कारण ही सभी प्रकार के संघनन (Conduction) तथा वर्षण (Precipitation) एवं उनके विभिन्न रूप; जैसे-बादल (Cloud), जलवृष्टि (Rainfall), तुषार (Frost), हिम (lce), ओस Dew) एवं ओला (Hail) आदि का सृजन होता है। जलवाष्प सूर्य के किरणों के लिए पारदर्शी होता है जिसे पार कर सूर्य की किरणें (rays) पृथ्वी तक पहुँचती हैं तथा पृथ्वी के समीप वायुमण्डलीय क्षेत्र को गर्म करने में सहयोगी सिद्ध होती है।
(III) धूल-कण (Dust Particles) : वायुमण्डल में वायु की गति के कारण सूक्ष्म धूल के कण उड़ते रहते हैं। ये धूल के कण विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होते हैं। इनमें सूक्ष्म मिट्टी, धूल, समुद्री नमक, धुएँ की कालिख, राख तथा उल्कापात के कण सम्मिलित हैं। धूलकण प्रायः वायुमण्डल की निचली परतों में ही रहते हैं। ये धूल-कण हमारे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी होते हैं।इनकी उपस्थिति के कारण वायुमण्डल में अनेक घटनाएं घटती हैं। वायुमण्डल में धूलकणों की मात्रा भी ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ घटती जाती है। धूलकण के अभाव से ताप का अवशोषण कम हो जाता है।वर्षा, कुहरा, बादल, सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय आकाश में लालिमा एवं इन्द्रधनुष के सात रंग आदि इन्हीं के क्रिया के प्रतिफल होते हैं।
Q. 2. वायुमंडल में तापक्रम परिवर्तन के कारण क्या है ?
अथवा, वायुमंडलीय तापमान के अंतर के कारण लिखो।
उत्तर - वायुमंडल में सर्वत्र तापक्रम एक प्रकार का नहीं रहता है वायुमंडल में तापमान में अंतर के निम्न कारण है -
1. अक्षांश (Latitude) :-
सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर प्रायः सीधे पड़ती हैं जबकि ध्रुवों की ओर क्रमशः तिरछी पड़ती है। सीधी किरणें धरातल के कम भाग को अधिक उष्मा देती हैं। जब किरणों को वायुमण्डल के अधिक आवरण को पार करना पड़ता है तो उष्मा का अधिक भाग नष्ट हो जाता है। तिरछी किरणें धरातल के अधिक भाग को घेरती है। अतः धरातल कम गर्म हो पाता है। इनके सम्पर्क में आने वाली हवाएँ कम गर्म होती हैं। यही कारण है कि भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर बढ़ने पर वायुमण्डलीय ताप घटता जाता है।
2. ऊँचाई (Altitude) - धरातल से जैसे - जैसे ऊँचाई बढ़ती जाती है, वायुमण्डल का घनत्व कम होता जाता है तथा जलवाष्प और धूलकण की मात्रा घटती जाती है। फलतः वायु में उष्मा ग्रहण करने की क्षमता भी कम हो जाती है। वायुमण्डल में प्रति 1000 मीटर की ऊँचाई बढ़ने पर तापमान 6.4°C की दर से घटता जाता है अथवा सामान्यतः प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर एक डिग्री सेल्सियस तापमान कम हो जाता है।
अतः समान अक्षांश पर स्थित ऊँचे स्थान निम्न स्थानों की अपेक्षा ठण्डे हुआ करते हैं।उदाहरण के लिए पर्वतों की चोटियाँ अपने निचले भागों से अधिक ठंडी होती हैं क्योंकि वहाँ अपेक्षाकृत कम गर्मी पड़ती है। समुद्रतल से जो स्थान जितना ऊंचा होगा वहाँ का तापमान उतना ही कम होता जायेगा।यही कारण है कि दार्जिलिंग, सिलीगुड़ी से अधिक ठंडा है। जबकि ये दोनों ही स्थान एक ही अक्षांश पर स्थित हैं।
3. जल और स्थल भाग का वितरण (Distribution of Land and Water Bodies):
समुद्र के तटीय भागों में तापमान सम रहता है। इसके विपरीत जो स्थान समुद्र से दूर रहते हैं वहाँ का तापमान विषम होता है। इसका कारण यह है कि जल स्थल की तुलना में देरी से गर्म होता है जबकि स्थल सूर्य की किरणों से शीघ्र गर्म हो जाता है। उसके कारण स्वरूप ग्रीष्मकाल में जल स्थल से ठंडा रहता है तथा ठीक विपरीत शीतऋतु में जल स्थल की अपेक्षा गरम रहता है। इस प्रकार समुद्र की दूरी के अनुसार जलवायु में विषमता आती जाती है।
कोलकाता का तापमान दिल्ली की तुलना में सम है। इसका कारण दिल्ली का समुद्र से काफी दूर होना और कोलकाता समुद्र तटवर्ती शहर है। कोलकाता में शीत ऋतु काफी सुहानी होती है जबकि दिल्ली में कठोर सर्दी पड़ती है।
4. पवनें (Winds) -
समुद्र से आने वाली पवनें आर्द्र होती हैं अतः तापमान कम कर देती हैं।
इसके विपरीत महाद्वीपों से आने वाली पवने शुष्क होती हैं। ये जिस क्षेत्र में प्रवाहित होती हैं वहाँ का तापमान बढ़ जाता है।
जैसे - उत्तरी ध्रुव से आने वाली ठण्डी पवनें कनाडा के तापमान को तथा साइबेरिया से आने वाली ठण्डी पवनें तिब्बत के तापमान को कम कर देती हैं जबकि सहारा के मरुस्थल से आने वाली हवायें दक्षिणी यूरोप के तापक्रम को बढ़ा देती हैं।
5. समुद्री धाराएँ (Ocean currents) -
गर्म व ठण्डी समुद्री धाराएं तटवर्ती भागों में तापमान को बढ़ा व घटा देती हैं।
उदाहरण: यूरोप के उत्तरी-पश्चिमी भाग का तापक्रम गल्फ स्ट्रीम की गर्म धारा के प्रभाव से इतना अधिक गर्म हो जाता है कि वहाँ के बन्दरगाह वर्ष भर खुले रहते हैं,
इसके विपरीत लैब्रोडोर की ठण्डी धारा के प्रभाव से कनाडा का पूर्वी तट वर्ष के 9 महीने जमा रहता है।
6. ढाल (Slope) :-
पर्वतों के जो ढाल सूर्य की किरणों के सामने पड़ते हैं वहाँ सूर्य की किरणें लंबवत पड़ती है अत: उस डाल पर तापक्रम ऊँचा रहता है। यही कारण है कि उत्तरी गोलार्द्ध में पर्वतों के दक्षिणी ढाल दक्षिणी गोलार्द्ध में पर्वतों के उत्तरी ढाल अधिक गर्म रहते हैं।
इसके विपरीत पर्वतों के जो ढाल सूर्य की किरणों से विमुख होते हैं, वे सूर्य की लम्बवत किरणों से वंचित रहते हैं और उनका तापक्रम कम रहता है। इन ढालों को ताप छाया प्रदेश (Heat-Shadow Region) कहते हैं। उदाहरण के लिए हिमालय पर्वत का उत्तरी ढाल ताप-छाया प्रदेश में पड़ने के कारण ठण्डा रहता है।
7. मिट्टी (Soil) – हिमाच्छादित सतह से सौर्यिक विकिरण के अधिक मात्रा में परावर्तित हो जाने के कारण कम उष्मा मिलने से तापक्रम कम हो जाता है जबकि रेतीली मिट्टी (Sandy soil) में सौर्थिक विकिरण का अधिक अवशोषण होने से तापक्रम अधिक हो जाता है।
8. प्राकृतिक वनस्पति (Natural vegetation) -
पेड़-पौधे तापमान को नियन्त्रित करते हैं। ये एक तरफ तो अपनी छाया से सूर्यताप को धरातल पर पहुँचने से रोकते हैं तथा दूसरी तरफ वायुमण्डल में निरन्तर नमी की आपूर्ति करते हैं। अतः वनस्पति से ढके प्रदेशों की जलवायु सम तथा वनस्पतिविहीन प्रदेशों की जलवायु विषम होती है।
9. बादल एवं वर्षा (Cloud cover and precipitation) -
घने बादल दिन में सूर्य की किरणों को धरातल पर पहुंचने में बाधा देते हैं जिससे बादलों से ढके दिन, स्वच्छ दिनों की अपेक्षा ठण्डे रहते हैं। इसी प्रकार रात में बादल पृथ्वी के ताप को ऊपर जाने से रोकते हैं जिससे गर्मी बनी रहती है। यही कारण है कि बादलों से ढकी रातें स्वच्छ रातों की अपेक्षा गर्म होती हैं। इसी प्रकार वर्षा भी नमी उत्पन्न कर तापक्रम को कम कर देती है।
10. शहरीकरण और औद्योगीकरण (Urbanisation and Industrialisatoin) - शहरीकरण एवं औद्योगीकरण से वायुमण्डल में तापमान बढ़ जाता है क्योंकि इससे ऊर्जा का अधिक उपयोग होता है तथा एक स्थान पर अधिक लोगों के रहने से भी तापमान अधिक हो जाता है।
Q. 3. वायुमंडल के विभिन्न परतों का वर्णन कीजिए।
अथवा, अधोमंडल एवम् समतापमंडल का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
वायुमंडल की विभिन्न परतें
(Layers of Atmosphere)- वैज्ञानिक शोध व खोज से वायुमण्डल में अनेक वायु की परतें पाई गयी हैं। वायु की ये परतें विभिन्न घनत्व की होती है। तापमान, दबाव (Pressure) तथा ऊंचाई की विभिन्नता के आधार पर वायुमण्डल को 6 परतों में विभाजित किया जा सकता है।
1. क्षोभ मण्डल या परिवर्तन मण्डल या घनमंडल (Troposphere) -
यह वायुमण्डल का सबसे निचला स्तर है जिसकी ऊँचाई भूमध्य रेखा के समीप 16-18 किलोमीटर तथा ध्रुवों के समीप 8 किलोमीटर तक है।
यह Tropo+sphere से बना है। Tropo का अर्थ परिवर्तन (Change) है।
वायुमण्डल का सबसे निचला स्तर होने के कारण इस स्तर को अधोमंडल कहते हैं। वायुमण्डल के अधिकांश संरचनात्मक पदार्थ : जैसे- भारी गैसें, जलवाष्प, धूल-कण आदि यहीं पाए जाते हैं।
इस भाग में प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1°C तापक्रम तथा प्रति 110 मीटर की ऊँचाई पर 1 सेण्टीमीटर वायुभार कम होता जाता है।
ऊँचाई के अनुसार तापक्रम एवं वायुभार में परिवर्तन होने के कारण इस भाग को परिवर्तन मण्डल कहते हैं।
इस भाग में वायु कभी शान्त नहीं रहती है।इस स्तर में तापक्रम में अन्तर होने के कारण वायु प्रवाह होता है। यह भाग विकिरण (Radiation), संचालन (Con- duction), और संवाहन (Convection) द्वारा गर्म या ठण्डा होता रहता है।
इस स्तर का दबाव और तापमान सभी स्तरों से अधिक होता है क्योंकि इस स्तर में वायु की सघनता सबसे अधिक होती है। इसलिए इसे घनमंडल भी कहते हैं।
वायुमण्डल के सम्पूर्ण वायु का लगभग 75% वायु इसी स्तर में पाई जाती है।
इस स्तर पर वायुमण्डल में जलवाष्प, धूलकण, ओसकण तथा बादल पाये जाते हैं एवं आँधी, तूफान, वर्षा, ओलापात, बज्रपात आदि प्राकृतिक घटनाएँ घटती हैं। इसी से इसे क्षोभमण्डल भी कहते हैं।
2. समताप मण्डल (Stratosphere) -
घनमंडल के ऊपर का वायुमण्डल जो प्रायः 50 कि.मी. की ऊँचाई तक फैला हुआ है, उसे शांत मंडल कहते हैं।
इस भाग में ऊँचाई के साथ तापक्रम में परिवर्तन नहीं होता है, बल्कि तापक्रम लगभग स्थिर रहता है। इसी से इसे समतापमण्डल कहते हैं।
इस स्तर में वायु की सघनता कम है तथा ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम है जिससे श्वास लेने में कठिनाई होती है । इस स्तर का तापक्रम स्थिर होने के कारण यहां की वायु स्थिर रहती है। इस स्तर में जेट विमान उड़ाये जाते हैं।
इस भाग का औसत तापक्रम 60°C रहता है। इस भाग में जलवाष्प एवं धूल-कण बहुत कम पाए जाते हैं। अत: इस मण्डल में आँधी, तूफान, हिम वर्षा एवं धन-गर्जन नहीं होते। समान तापमान, वादलों का अपेक्षाकृत अभाव और हल्की वायु इस मण्डल की विशेषताएँ हैं। यहाँ हवाएँ क्षैतिज रूप से चला करती हैं। इस मण्डल के निचले भाग में ओजोनमण्डल (Ozonosphere) तथा ऊपरी भाग में मध्यमण्डल (Mesosphere) हैं।
3. ओजोन मण्डल (Ozone-sphere) :-
यह समताप सीमा के ऊपर की परत है। यह 12 से 35 किमी तक फैला है। इस परत में ओजोन गैस पाई जाती है जो ऑक्सीजन के तीन अणुओ से मिलकर बनती है - O+O+O = O3, इसी कारण इसे ओजोन मण्डल कहते हैं। ओजोन गैस सूर्य से निकलने वाली गर्म तथा हानिकारक पराबैंगनी किरणों (Ultraviolet rays) को सोख लेती है। यदि ऐसा न होता तो इन किरणों से पृथ्वी पर इतनी गर्मी पहुँचती कि धरातल का सम्पूर्ण जल भाप बनकर उड़ जाता और पृथ्वी पर पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं का चिह्न ही न मिलता। यदि यह गैस इस परत में नहीं होती, तो लोग अन्धे हो जाते और उनका शरीर झुलस जाता।अतः यह क्षेत्र सूर्य की प्रचण्ड किरणों से पृथ्वी की रक्षा के लिए मुख्य रक्षा परत है, इसे
'पृथ्वी का रक्षा कवच' या ' पृथ्वी का छाता' कहते है।
इस क्षेत्र में ऊँचाई के साथ-साथ तापक्रम बढ़ता जाता है। इस क्षेत्र में एक विशेष प्रकार के बादल पाए जाते हैं जिन्हें मोती बादल (Mother of pearls) कहते हैं। इसकी ऊपरी सीमा को Ozono pause कहते हैं।
मध्यमण्डल (Mesosphere) - 50 से 80 किमी. की ऊँचाई वाले वायुमण्डलीय भाग को मध्यमण्डल कहते है ।
इस परत में ऊँचाई के साथ तापमान में गिरावट दर्ज की जाती है और 80 किमी. की ऊंचाई पर यह 100°C रह जाती है। परत में ग्रीष्मकाल में मध्य अक्षांशीय प्रदेशों में निशादीप्त मेघ (noctiluscent cloud) दिखायी देते हैं।इस संक्रमण क्रिया द्वारा ओजोन तथा आयन मण्डल का पृथकत्व होता है।
4. आयन मण्डल (lonosphere) - इस मण्डल का विस्तार 80 से 650 किमी तक है। इस स्तर में हाइड्रोजन, हिलीयम, ओजोन गैस आयन के रूप में पाई जाती है। इसी स्तर से रेडियों तथा दूरदर्शन तरंगों का प्रसारण होता है। इस स्तर में गैस आयन के रूप में होने के कारण सूर्य की किरणों को शोषित करती हैं अतः इस स्तर का तापमान लगभग 1100°C होता है। इसलिए इस मण्डल को ताप मण्डल (Thermosphere) भी कहते हैं। इसी स्तर से राकेट उड़ाया जाता है। इसी से बेतार के तार की क्रिया सम्पन्न होती है।
5. वाहा मण्डल (Exosphere) :- यह वायुमण्डल की सबसे ऊपरी परत है। इस मण्डल की वायु विरल होती है। इस परत की ऊँचाई 650 से 1000 किमी तक मानी जाती है। इसमें हाइड्रोजन और हीलियम गैसों की अधिकता मिलती है। इस परत के सम्बन्ध में अभी बहुत कम जानकारी प्राप्त है। इस स्तर का तापमान लगभग 2000°C होता है।
6) चुम्बक मंडल (Magnetosphere) - बर्हिमंडल के ऊपर का स्तर चुम्बक मंडल है। यह स्तर प्रायः वायु शून्य होता है।इसके ऊपर महाशून्य है।
4. ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है ?
इसके कारण एवम् प्रभाव लिखो।
उत्तर - ग्रीन हाउस प्रभाव -
पृथ्वी पर ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्य है। सूर्य से पृथ्वी पर पहुँचने वाली विकिरण ऊर्जा को सूर्यातप (insolation) कहते हैं ।
विच फील्ड के अनुसार सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने वाली विकरण ऊर्जा को सूर्याताप कहते हैं। यह ऊर्जा लघु तरंगों (short waves) के रूप में पृथ्वी पर पहुँचती है। इसका बहुत- सा भाग भूतल द्वारा दीर्घतरंग (long waves) के रूप में परावर्तित (वापस भेज दिया जाना) किया जाता है।
पृथ्वी का वायुमंडल सूर्यताप की विभिन्न तरंग दैर्ध्य वाली किरणों के साथ विभिन्न प्रकार का व्यवहार करता है। वायुमंडल सूर्य से आने वाली लघु तरंगों का 20% भाग अवशोषित कर लेता है परन्तु वायुमंडल में उपस्थित गैसें; विशेषत: कार्बन-डाई-आक्साइड तथा जलवाष्प भूतल में परावर्तित दीर्घ तरंगों (धरातल से वापस जाने वाली तरंगे) के 90% भाग का अवशोषण करते हैं।
इस प्रकार वायुमंडल को गर्म करने का मुख्य स्रोत पार्थिव विकिरण है। इसी दृष्टि से वायुमंडल ग्रीन हाउस अथवा किसी मोटर के शीशे की भांति व्यवहार करता है। यह सूर्य से आने वाली लघु किरणों को अपने बीच से गुजरने देता है, परन्तु धरातल से वापस बाहर जाने वाली दीर्घ किरणों का अवशोषण कर लेता है एवम् पृथ्वी की ऊष्मा बढ़ा देता है, इस प्रक्रिया को "ग्रीन हाउस प्रभाव" एवम् धरातल की ऊष्मा बढ़ने को "वैश्विक उष्मण" कहते है ।
ग्रीन हाउस गुण वाली गैसों को ग्रीन हाउस गैसें कहा जाता है; जैसे- कार्बन-डाई- आक्साइड, जलवाष्प, क्लूरो फ्लूरो कार्बन, नाइट्रस आक्साइड, ओजोन और मिथेन ।
वैज्ञानिकों ने हरित गृह (Green house) शब्द का प्रयोग उस प्रक्रिया के लिए किया है जिसमें वायुमंडलीय तापक्रम में वृद्धि हो रही है।
ग्रीन हाउस के सीसों की तरह कार्बन- डाई-आक्साइड गैस, जल वाष्प आदि जो सूर्यताप को पृथ्वी के धरातल पर आने तो देता है, पर पृथ्वी से वापस होती किरणों को अंतरिक्ष में जाने पर अवरोध उपस्थित करता है। परिणामस्वरूप वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि हो रही है। इन प्रभावों एवं वायुमंडल के तापमान में होने वाली वृद्धि को ग्रीन हाउस प्रभाव कहा जाता है।
ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण :-
पृथ्वी के वायुमंडल में उपस्थित ग्रीनहाउस गैसों के कारण पृथ्वी से अंतरिक्ष की और जाने वाले ताप के अवशोषण और वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि की घटना को ग्रीनहाउस प्रभाव कहते हैं | इसके निम्न कारण है :-
ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण
ग्रीनहाउस प्रभाव के प्रमुख कारण हैं:
i. जीवाश्म ईंधन का जलना
जीवाश्म ईंधन (कोयला और पेट्रोलियम एवम उनसे जुड़े उत्पाद) हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे परिवहन में और बिजली उत्पादन के लिए व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं। जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है। जनसंख्या में वृद्धि के साथ जीवाश्म ईंधन के उपयोग में वृद्धि हुई है। इससे वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की रिहाई में वृद्धि हुई है।
ii. वनों की कटाई
पौधे और पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। पेड़ों के कटने से ग्रीनहाउस गैसों में काफी वृद्धि होती है जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है।
iii. खेती
उर्वरकों में प्रयुक्त नाइट्रस ऑक्साइड वातावरण में ग्रीनहाउस प्रभाव के योगदानकर्ताओं में से एक है।
iv. औद्योगिक अपशिष्ट और लैंडफिल -
उद्योग और कारखाने हानिकारक गैसों का उत्पादन करते हैं जो वातावरण में छोड़ी जाती हैं।
लैंडफिल कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन भी छोड़ते हैं जो ग्रीनहाउस गैसों में जुड़ते हैं।
ग्रीनहाउस प्रभाव के प्रभाव
ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि के मुख्य प्रभाव हैं:
i. ग्लोबल वार्मिंग
यह पृथ्वी के वायुमंडल के औसत तापमान में क्रमिक वृद्धि की घटना है। इस पर्यावरणीय मुद्दे का मुख्य कारण जीवाश्म ईंधन के जलने, वाहनों, उद्योगों और अन्य मानवीय गतिविधियों से निकलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ी हुई मात्रा है।
ii.ओजोन परत का क्षरण
ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी की रक्षा करती है। यह समताप मंडल के ऊपरी क्षेत्रों में पाया जाता है। ओजोन परत की कमी के परिणामस्वरूप हानिकारक यूवी किरणें पृथ्वी की सतह पर प्रवेश करती हैं जिससे त्वचा का कैंसर हो सकता है और जलवायु में भी भारी बदलाव आ सकता है।
इस घटना का प्रमुख कारण क्लोरोफ्लोरोकार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, आदि सहित प्राकृतिक ग्रीनहाउस गैसों का संचय है।
iii. धुंध और वायु प्रदूषण
धुंआ, प्राकृतिक साधनों और मानव निर्मित गतिविधियों दोनों के कारण हो सकता है।
सामान्य तौर पर, स्मॉग आमतौर पर नाइट्रोजन और सल्फर ऑक्साइड सहित अधिक ग्रीनहाउस गैसों के संचय से बनता है। धुंआ के निर्माण में प्रमुख योगदान ऑटोमोबाइल और औद्योगिक उत्सर्जन, कृषि आग, प्राकृतिक जंगल की आग और आपस में इन रसायनों की प्रतिक्रिया है।
iv. जल निकायों का अम्लीकरण
हवा में ग्रीनहाउस गैसों की कुल मात्रा में वृद्धि ने दुनिया के अधिकांश जल निकायों को अम्लीय बना दिया है। ग्रीनहाउस गैसें वर्षा के पानी के साथ मिश्रित होती हैं और अम्लीय वर्षा के रूप में गिरती हैं। इससे जल निकायों का अम्लीकरण होता है।
इसके अलावा, वर्षा का पानी दूषित पदार्थों को अपने साथ ले जाता है और नदी, नालों और झीलों में गिर जाता है जिससे उनका अम्लीकरण हो जाता है।
Q. 5. वैश्विक उष्मण या भूमंडलीय उष्मण या ग्लोबल वार्मिंग क्या है? ग्लोबल वार्मिंग का कारण क्या है और इसके प्रभाव क्या हैं?
What is global warming or global warming or global warming? What is the cause of global warming and what are its effects?
Ans. वैश्विक उष्मण : साधारण भाषा में हम कह सकते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग या वैश्विक उष्मण", कार्बन डाइऑक्साइड, CFC और अन्य प्रदूषकों के बढ़ते स्तर के कारण ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण आमतौर पर पृथ्वी के तापमान में क्रमिक वृद्धि है।
पृथ्वी का वायुमंडल सूर्य से आने वाली लघु तरंगों का 20% भाग अवशोषित कर लेता है परन्तु वायुमंडल में उपस्थित गैसें; विशेषत: कार्बन-डाई-आक्साइड तथा जलवाष्प भूतल में परावर्तित दीर्घ तरंगों (धरातल से वापस जाने वाली तरंगे) के 90% भाग का अवशोषण करते हैं।
इस प्रकार वायुमंडल को गर्म करने का मुख्य स्रोत पार्थिव विकिरण है। इसी दृष्टि से वायुमंडल ग्रीन हाउस अथवा किसी मोटर के शीशे की भांति व्यवहार करता है। यह सूर्य से आने वाली लघु किरणों को अपने बीच से गुजरने देता है, परन्तु धरातल से वापस बाहर जाने वाली दीर्घ किरणों का अवशोषण कर लेता है एवम् पृथ्वी की ऊष्मा बढ़ा देता है, इस प्रक्रिया को "ग्रीन हाउस प्रभाव" एवम् धरातल की ऊष्मा बढ़ने को "वैश्विक उष्मण" कहते है ।
वैश्विक उष्मण के कारण -
ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
ग्लोबल वार्मिंग के मानव निर्मित कारण
i. वनों की कटाई :
पौधे ऑक्सीजन के मुख्य स्रोत हैं। वे कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं जिससे पर्यावरण संतुलन बना रहता है। कई घरेलू और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए जंगलों को कम किया जा रहा है। इससे पर्यावरण असंतुलन पैदा हो गया है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा मिल रहा है।
ii. वाहनों का उपयोग :
बहुत कम दूरी के लिए भी वाहनों के उपयोग से विभिन्न गैसीय उत्सर्जन होते हैं। वाहन जीवाश्म ईंधन जलाते हैं जो बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य विषाक्त पदार्थों को वातावरण में उत्सर्जित करते हैं जिसके परिणामस्वरूप तापमान में वृद्धि होती है।
iii. क्लोरोफ्लोरोकार्बन :
एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर के अत्यधिक उपयोग के साथ, मानव पर्यावरण में CFC जोड़ रहा है जो वायुमंडलीय ओजोन परत को प्रभावित करता है। ओजोन परत पृथ्वी की सतह को सूर्य से निकलने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है। CFCs ने पराबैंगनी किरणों के लिए ओजोन परत की कमी को जन्म दिया है, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।
iv. औद्योगीकरण का विकास :
औद्योगीकरण के आगमन के साथ, पृथ्वी का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। कारखानों से निकलने वाला हानिकारक उत्सर्जन पृथ्वी के बढ़ते तापमान में इजाफा करता है।
v. कृषि
विभिन्न कृषि गतिविधियाँ कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैस का उत्पादन करती हैं। ये वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों को जोड़ते हैं और पृथ्वी के तापमान को बढ़ाते हैं।
vi. जनसंख्या :
जनसंख्या में वृद्धि का मतलब है कि अधिक लोग सांस ले रहे हैं। इससे वातावरण में ग्लोबल वार्मिंग पैदा करने वाली प्राथमिक गैस कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि होती है।
ग्लोबल वार्मिंग के प्राकृतिक कारण
i. ज्वालामुखी :
ज्वालामुखी ग्लोबल वार्मिंग के सबसे बड़े प्राकृतिक योगदानकर्ताओं में से एक हैं। ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान निकलने वाली राख और धुआं वातावरण में चला जाता है और जलवायु को प्रभावित करता है।
ii. जल वाष्प :
जलवाष्प एक प्रकार की ग्रीनहाउस गैस है। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि के कारण, जल निकायों से अधिक पानी वाष्पित हो जाता है और ग्लोबल वार्मिंग को जोड़कर वातावरण में रहता है।
iii. जंगल की लपटें :
जंगल की आग या जंगल की आग से बड़ी मात्रा में कार्बन युक्त धुंआ निकलता है। ये गैसें वायुमंडल में छोड़ी जाती हैं और पृथ्वी के तापमान में वृद्धि करती हैं जिसके परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग होती है।
वैश्विक उष्मण के प्रभाव -
i) ध्रुवीय बर्फ की टोपियों और पर्वतीय हिमनदों का पिघलना - भूमण्डलीय उष्मन से गर्मी बढ़ जाती है जिससे - ध्रुवीय क्षेत्र की बर्फ की टोपियाँ पिघल सकती हैं। पिछले कुछ वर्षों में हिमनदों का आकार घट गया है। हिमालय के कई हिमनद पिघलकर लुप्त हो गये हैं। गंगा का उद्गम गंगोत्री भी 20 किमी. से अधिक सिकुड़ गया है।
(ii). समुद्र स्तर का बढ़ना- ध्रुवीय क्षेत्र की बर्फ के पिघलने से समुद्र का जल स्तर बढ़ जायेगा जिससे अनेक द्वीप - और तटवर्ती बस्तियाँ जल में डूब जायेंगी।
iii. वर्षा की प्रकृति में परिवर्तन (Change in the nature of precipitation) - भूमण्डलीय उष्मन के - व्यापक प्रभाव के कारण वर्षा एवं वाष्पन के प्रतिरूपों में परिवर्तन आया है। IPCCC (2012) के अनुसार वैश्विक उष्मन के कारण ना केवल वर्षा की आवृत्ति, मात्रा एवं तीव्रता बदल रही है, अपितु इसके वितरण प्रारूप पर भी प्रभाव पड़ा है। फलस्वरूप कहीं-कहीं अत्यन्त कम वृष्टि के कारण सूखा की समस्या उत्पन्न हो रही है।
iv. जलवायु पेटियों का स्थानान्तरण (Shifting of climatic belts) :-
वैश्विक ताप वृद्धि के परिणामस्वरूप जलवायु की पेटियों में स्थानान्तरण हो सकता है। शीतोष्ण जलवायु के क्षेत्र उच्च अक्षांशों की ओर खिसक जाएँगे तथा इसी के अनुसार प्राकृतिक वनस्पतियों के स्वरूप में भी परिवर्तन होगा। जिसके कारण मरुस्थलों का विस्तार होगा।
v. उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि (Increase in frequency of tropical cyclones) :-
ताप वृद्धि से सागरों में वाष्पीकरण की क्रिया अधिक होगी जिससे उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की वारम्वारता एवं प्रचण्डता बढ़ेगी। मरुस्थलों के अतिरिक्त अन्य भू-भागों में अधिक वर्षा के कारण बाढ़ की सम्भावना में वृद्धि होगी।
vi. कृषि फसलों के उत्पादन पर प्रभाव (Effects on production of agricultural crops) :-
कुछ कृषि वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी है कि वायुमण्डल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से कुछ अंचलों में फसलों का उत्पादन काफी बढ़ सकता है। उनका कहना है कि कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से पौधों में प्रकाश संश्लेषण की दर अधिक हो जाएगी जिससे उनके विकास एवं उत्पादकता दोनों में ही वृद्धि होगी।
vii. कृषि पद्धति में बदलाव (Change in Agricultural Methods) :-
वैश्विक ताप वृद्धि तथा सूखे एवं बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि के कारण पृथ्वी के कई अंचलों में कृषि पद्धति के बदलाव की सम्भावना है। जिन अंचलों में सूखे की बारम्बारता बढ़ रही है वहाँ अब ऐसी फसलें उगाई जा सकती हैं, जिन्हें कम जल की आवश्यकता हो ।
Note - वैश्विक उष्मण एवम ग्रीन हाउस प्रभाव एक दूसरे से जुड़े हुए है...
ग्रीन हाउस प्रभाव ही वैश्विक उष्मण का कारण है।
Q.6. ताप कटिबंध से क्या समझते हो ?
पृथ्वी को कितने ताप कटिबंधों में बांटा गया है, वर्णन कीजिए।
What do you understand by heat zone?
Describe different heat zones in which the earth is divided into.
उत्तर -
ताप कटिबन्ध (Heat belts) -
भूमध्य रेखीय प्रदेशों में सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं। अतः ये प्रदेश वर्ष भर - अत्यधिक गर्म रहते हैं। इसके विपरीत हम भूमध्य रेखा से ज्यों-ज्यों ध्रुवों की तरफ बढ़ते हैं, सूर्य की किरणें तिरछी होती जाती हैं, इसलिए तापमान भी क्रमशः कम होता जाता है। इस तथ्य के आधार पर भूमण्डल को तीन ताप कटिबन्धों (Heat zones) में विभाजित किया गया है।
1) उष्ण कटिबन्ध (Tropical or torrid zones) –
भूमध्य रेखा के दोनों ओर कर्क और मकर (23½°N तथा 23½°S) रेखाओं के मध्य उष्ण कटिबन्ध का विस्तार है। अतः पृथ्वी का यह भाग गर्म रहता है। कर्क और मकर रेखाओं की स्थिति उत्तर और दक्षिण में उस बिन्दु तक है जहाँ सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं। यहाँ कभी भी तापमान 20°C से कम नहीं होता। वार्षिक तापान्तर कम तथा दैनिक तापान्तर अधिक होता है।
ii. शीतोष्ण कटिबन्ध (Temperate zone) - शीतोष्ण कटिबन्ध का विस्तार 23½° से 66½° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के मध्य है।
उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा (23½°N) से आर्कटिक वृत्त (66½°N) के मध्य तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा (23½°S) से अण्टार्कटिक वृत्त (66½°S) के मध्य ये दशाएँ मिलती हैं।
इस स्थिति में इस क्षेत्र में सूर्य की किरणें सदैव तिरछी पड़ती हैं । परिणामस्वरूप यहाँ न अधिक सर्दी होती है और न अधिक गर्मी । अतः इसे शीतोष्ण कटिबन्ध कहते हैं। यहाँ वार्षिक औसत तापमान 20°C से कम होता है।
(ii) शीत कटिबन्ध (Cold Zone) : यह दोनों गोलर्धो में 66½°अक्षांशों से ध्रुवों (90°) तक का क्षेत्र है।
उत्तरी गोलार्द्ध के आर्कटिक वृत्त (66½°N) और उत्तरी ध्रुव (90°N) तथा दक्षिण गोलार्द्ध में अंटार्कटिक वृत्त (66½°S)और दक्षिणी ध्रुव (90°S) के बीच के क्षेत्र में सूर्य कभी क्षितिज के ऊपर नहीं जाता । सूर्य की किरणें यहाँ बहुत ही तिरछी पड़ती हैं । फलस्वरूप इन क्षेत्रों में बहुत अधिक ठण्ड पड़ती है। इसलिए इसे शीत कटिबन्ध कहा जाता है । यहाँ दिन और रात की लम्बाई छः महीने तक हुआ करती है। पृथ्वी के ये सबसे सर्द भाग हैं ।
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Teaching in an organised method:-
i) Chapter/Poem-Reading (Lecture about the theme of the chapter)
ii)Making the student understood about the substance of the chapter/Poem/Drama
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iv)Grammatical Portion if the chapter
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